श्वधारक महाकाल उज्जैन (म.प्र.)
ब्राह्मण्ड अधिपति महाकाल तीन लोक के अधिपति शिव का तीसरा नेत्र धरती पर नाभि केन्द्र होकर नित्य प्रतिदिन एक मुर्दा(आत्मा) प्रातः सुबह चार बजे रोज अपने ऊपर चढ़ाते और कई आत्माओ को रोज जन्म देते है।
अवंतिका राजाधिराज महाकाल की पवित्र धार्मिक नगरी में हर कंकर में स्वयंभू मंदिर है, यहां अधिकांश मंदिरों में स्वयंभू देवता ही प्रकट होते हैं| महारानी क्षिप्रा, जो मोक्षदायनी है इन्ही तट पर महाकुंभ सिंहस्थ का आयोजन हर बारह वर्ष में होता है! देशों के सभी महामंडलेश्वर, महंत, साधु-संत एवं अवशेष आते हैं, कृष्ण की शिक्षा स्थली भी यही है! उज्जैन को धार्मिक नगरी के साथ-साथ श्मशान घाट के लिए भी जाना जाता है यहां के श्मशान को चक्र तीर्थ के नाम से जाना जाता है, पुराणों के अनुसार द्वापर युग में महाभारत के विशाल युद्ध में जब दानवीर कर्ण का वध अर्जुन ने किया था, तब अर्जुन ने श्री कृष्ण ने कहा था कि कर्ण को दानवीर क्यों कहा जाता है, तब माधव ने उनसे कहा था कि अभी सूर्य पुत्र कर्ण के पास इस अंतिम समय में आप क्या देख रहे हैं यदि कोई कर्ण के पास दान लेने के लिए जाए तो कर्ण क्या दे सकता है, अर्जुन ने आश्चर्यजनक रूप से कहा कि जीवन के इस अंतिम क्षण में मृत व्यक्ति क्या दान दे सकता है, तब श्री कृष्ण ने ब्राह्मण भेष में कर्ण की परीक्षा ली, कुरूक्षेत्र युद्ध पर सांयकालीन समय में कर्ण अंतिम सांसे ले रहे थे, नारायण ने उन्हें बुलाया और आवाज दी कि दानवीर कर्ण मुझे भिक्षा दो ,तब कर्ण ने कहा मै तो मरणा अवस्था में हु में क्या दान दे सकता हु ? तब माधव ने कहा कि तुम कैसे दानवीर हो सकते हो जो इस मरणा अवस्था समय में भी दान नहीं दे सकता तब कर्ण ने कहा मुझे क्षमा करे ब्राह्मण महाराज इतनी पीड़ा होते हुए भी कर्ण ने अपने मुख से पत्थर उठाकर अपने मुंह से सोने के दांत निकाल लिए तब श्री कृष्ण ने कहा कि यह तो झूठा दान है कर्ण ने क्षमा मांगते हुए अपने धनुष की प्रत्यंचा अपने पैरो से खींची और उस तीर की दिशा धरती पैर साधी उस तीर के लगते ही धरती में से जल निकला और उस जल से अपने स्वर्ण दन्त को धोकर श्री कृष्ण जी को भेंट किया तब श्री कृष्ण अपने असली रूप में आये और कर्ण को आशीर्वाद दिया कि इस स्वर्ण की तरह सूर्य सा प्रकाशित यश प्राप्त हो ,उसके पश्चात् कर्ण ने कहा मेरा अंतिम संस्कार ऐसी जगह जहाँ युद्ध का रक्त ना हो, तब श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र को छोड़ा वह चक्र पुरे भारत वर्ष में गया तब एक ही स्थान था जहाँ रक्त नहीं था वह स्थान अवंतिका था जिसे हम उज्जैन के नाम से जानते उनके सुदर्शन चक्र पर सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया, उसी से इस श्मशान भूमि को चक्र तीर्थ कहा जाता है और तंत्र मंत्र की सिद्धि यही प्राप्त होती है। ऐसा अंतिम संस्कार आज तक कभी किसी का नहीं हुआ अनादिकाल से यहां प्रति दिन एक पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार होता है और बाबा महाकाल की भस्म पूजा के लिए भस्म यही से ली जाती है, हमारे मन में यही विषय है कि इस पवित्र धार्मिक नगरी में किसी का नहीं भी मृत शरीर का अंतिम संस्कार सम्मान पूर्वक हो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में जहा सुविधाओं का आभाव है वहा पर हमारी संस्था सुविधा युक्त श्मशान घाट निर्माण करती है और शरीर की आत्मा को मुक्ति मिले यही हमारा लक्ष्य है|
|| राम नाम सत्य है ||